सिंघाड़ा फल – Water Chestnut In Hindi

👉 हैलो दोस्तों आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार। तो आज में आपको इस आर्टिकल में बात करने वाला हु सिंघाड़ा के बारे में जानकारी, अमेजिंग फैक्ट्स, सिंघाड़ा खाने के फायदे और नुकशान और सिंघाड़ा की खेती तो उम्मीद है की आपको यह हमारा आर्टिकल पसंद आयेंगा। तो चलो देखते हे सिंघाड़ा के बारे में।

सिंघाड़ा फल – Water Chestnut In Hindi

सिंघाड़ा फल के बारे में जानकारी

सिंघाड़ा फल के बारे में जानकारी

👉 सिंघाड़ा एक ऐसा फल हे जो त्रिकोण आकार का और दो सींग वाला होता है। सिंघाड़ा को पानी फल, वाटर चेस्टनट, वाटर कालट्रोप भी कहते हे। बहार से काला, हरा दिखने वाला सिंघाडा अंदर से सफ़ेद होता है। कहते हे सिघाड़ा के तीन कोने ब्रह्मा, विष्णु एव महेश का प्रतिक हे। इसलिए सिंघाड़ा को धार्मिक दष्ट्री से भी बहोत पवित्र माना जाता है।

👉 सिंघाड़ा तालाब के पानी की सतह पर तैरने वाला जलीय शाकीय पौधा होता है। यह मुख्यतौर पर ठण्ड के मौसम में होता है अक्टुंबर से जनवरी तक यह फल भारत में मिलता है। सिंघाड़ा को कई तरह से खाया जा सकता हे जैसे की छिलका उतारकर ऐसे ही कच्चा खा सकते हे, या इसे उबालकर फिर छिलका उतारकर खा सकते हे, इसे उबालकर आलू की तरह सब्जी बनाकर भी खा सकते हे आदि तरिके से आप इसे खा सकते हे। यह फल भारत के बाजारों में आसानी से मिल जाता है। 

👉 सिंघाड़ा एक ऐसा फल हे जिसमे कई तरह के पोषक तत्व भी मौजूद होते हे जैसे की प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेड, एनर्जी, शुगर, कैल्शियम, जिंक, फाइबर, आयरन, पोटेशियम, सोडियम आदि पोषक तत्व सिंघाड़ा में पाए जाते हे जो हमारे शरीर के लिए बहोत फायदेमंद होते है।

सिंघाड़ा फल के बारे में अमेजिंग फैक्ट्स

👉 सिंघाड़ा पानी में पसरने वाली एक लता में पैदा होने वाला एक त्रिकोण आकार का फल हे।

👉 सिंघोड़ा में सिंघो की तरह दो कांटे होते हे।

👉 सिंघोड़ा का वैज्ञानिक नाम ट्रैपा नतनसो (Trapa natans) हे।

👉 सिंघोड़ा फल भारत के बाजारों में अक्टुंबर से जनवरी तक मिलता है।

👉 सिंघोड़ा फल को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिक भी माना जाता है।

👉 सिंघाड़ा की खेती बरसात शुरू होते ही जुलाई से लेकर अगस्त के पहले सप्ताह तक किया जाता है।

👉 सिंघाड़ा भारत के पूर्व में उगते हे जैसे की पच्छिम बंगाल, झारखण्ड और बिहार आदि क्षेत्रों में सिघाड़ा की खेती की जाती है।

👉 सिघाड़ा पानी में पैदा होता हे इसलिए इसे पानी फल से भी जाना जाता है।

👉 सिंघाड़ा में कई तरह के पोषक तत्व भी पाए जाते है जो हमारे शरीर के लिए बहोत ही फायदेमंद होते है।

सिंघाड़ा फल खाने के फायदे

1. गर्भवती महिलाओ के लिए

👉 प्रेग्नेंसी के समय सिंघाड़ा महिला के लिए स्वास्थ्य के लिए बहोत अच्छा होता हे। ये गर्भ को सही पोषण देता हे, साथ ही गर्भाशय की रक्षा करता हे। जिससे गर्भपात का खतरा कम होता है।

2. डायाबिटीज के मरीजों के लिए

👉 डायाबिटीज रोगियों के लिए सिघाड़ा काफी फायदेमंद होता हे। ये डायाबिटीज होने पर शरीर में ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करता है।

3. दांत और हड्डियों के लिए

👉 सिंघाड़े का सेवन करने से दांत और हड्डिया मजबूत बनती है। क्योकि इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा पायी जाती हे। इसके अलावा यह शरीर की कमजोरी को दूर करने में भी सहायक हे।

4. पेट की समस्या के लिए

👉 सिंघाड़ा खाने से पेट की समस्या जैसे की अपच, गैस, एसिडिटी दूर होती हे। पेट की समस्या के समाधान के लिए सिंघाड़ा को प्राकतिक उपचार माना जाता है। सिंघाड़ाका पाउडर आंतो के लिए और आंतरिक गर्मी को हटाने के लिए फायदेमंद है। साथ ही पित, कब्ज की समस्या भी हल होती है।

5. खून बढ़ता है

👉 सिंघाड़ा खाने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है। क्योकि इसमें आइरन अधिक मात्रा में होता हे।

 

सिंघाड़ा फल खाने के नुकशान

1. लूजमोशन की सम्भावना

👉 दिनभर अगर आप दो से तीन सिंघोड़े खाते हे तो ठीक लेकिन इससे ज्यादा खाते हे यह आपके पाचन तंत्र पर असर डालता हे। इससे लूजमोशन होने की संभावना होती हे।

2. पेट दर्द, कब्ज की समस्या

👉 अगर आप सिंघाडो का अधिक मात्रा में सेवन करते हे तो पेट दर्द, कब्ज और आंतो की सूजन की समस्या हो सकती है। इसलिए सिंघाडो का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।

3. खांसी और कफ

👉 सिंघोड़ा का सेवन करने के तुरंत बाद पानी पिने से खांसी और कफ होने की संभावना रहती हे। इसलिए सिंघोड़ा का सेवन करने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए।

👉 सिंघोड़ा का अधिक मात्रा में सेवन करने से कई तरह से नुकशान होते हे जैसे की पाचन तंत्र ख़राब, सूजन, एलजी आदि समस्याये हो सकती हे लिए सिंघोड़ा का कम मात्रा में ही सेवन करना चाहिए।

 

सिंघाड़ा फल की खेती के बारे में जानकारी

1. उपयुक्त जलवायु

👉 सिंघोड़े की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले जगह उत्तम होता हे। सिंघोड़े की खेती के लिए तालाब में लगभग 1-2 फिट पानी होना चाहिए। इसकी खेती स्थिर जल वाले खेतो में की जाती हे साथ ही साथ खेतो में ह्यूमन्स की मात्रा अच्छी होनी चाहिए।

2. उन्नत किस्मे

👉 सिंघोड़े में कोई उन्नत किस्मे विकसित नहीं की गई हे। परन्तु जो किस्म प्रचलित हे उनमे जल्द पकने वाली जातिया हरीरा गठुआ, लाल गठुआ, कटीला, लाल चिकनी गुलरी, किस्मो की पहली तुड़ाई रोपाई के 120-130 दिन में होती हे।

3. खेती की तैयारी

👉 इस फसल के लिए नर्सरी तैयार करते समय ध्यान रखे की आप जनवरी-फरवरी के महीने में नर्सरी तैयार करे। अगर आप बीज से पौधे तैयार कर रहे हे तो जनवरी फरवरी के महीनो में बीज को बो दे और जब पौधा रोपण के लायक हो जाये तो मई-जून के महीने में इनमे से एक एक मीटर लंबी बेल तोड़कर इन्हे तालाब में रोप देना चाहिए।

4. नर्सरी

👉 सिंघोड़े की नर्सरी तैयार करेने के लिए दूसरी तुड़ाई के स्वस्थ पके फलो के बीज हेतु चयन करके उन्हें जनवरी माह तक पानी में डुबाकर रख्हा जाता हे। 

👉 अंकुरण के पहले फरवरी के द्वितीय सप्ताह में इन फलो को सुरक्षित स्थानों में गहरे पानी में तालाब या टांके में दाल दिए जाते हे। मार्च माह में फलो से बेल निकलने लगती हे वो एक माह में 1.5 से 2 मीटर तक लम्बी हो जाती हे। इन बेलो से एक मीटर लंबी बेलो को तोड़कर अप्रैल से जून तक रोपणी का फैलाव खरपतवार रहित तालाब में किया जाता हे।

5. बुआई का सही समय

👉 इस फसल के लिए पानी की जरूरत रहती हे। इसलिए मानसून के समय इसके लिए एकदम बहेतर समय माना जाता हे। मानसून की बारिश के साथ ही सिंघोड़े की बुआई शुरू हो जाती हे। जून-जुलाई में सिंघोड़ा बोया जाता हे। आमतौर पर छोटे तालाबों, पोखरों में सिंघोड़ा का बीज बोया जाता हे।

6. फसल की रोपाई

👉 अप्रैल से जून के महीने तक इन बेलो में से 1-1 मीटर बेलो को ऐसे तालाब में रोपना हे जिसमे खरपतवार ना हो। रोपाई को सुरक्षित रखने के लिए तालाब में प्रति हेक्टेयर 300 किलो सुपर फॉस्फेट, 60 किलो पोटाश और 20 किलो यूरिया दे देना चाहिए।

7. किट और रोग

👉 सिंघाड़े में कई तरह के किट और रोग दिखने मिल जाते हे जैसे की सिंघाड़ा भृंग, नीला भृंग, माहु, घुन और लाल खजुरा नाम के किट का खतरा होता हे। जो फसल को 25% से 40% तक कम कर देते हे। इसके आलावा लोहिया और दहिया रोग का खतरा होता हे। इसके बचाव के लिए हमे समय रहते कीटनाशक का इस्तेमाल कर लेना चाहिए।

8. फसल की तुड़ाई

👉 जल्दी पकने वाले सिंघाड़े के प्रजातियों की पहली तुड़ाई अक्टुंबर के शुरुआत में और अंतिम तुड़ाई दिसंबर के अंत में होती है। इसी प्रकार देर से पकने वाले सिंघाड़े की प्रजातियो की पहली तुड़ाई नवंबर के शुरुआत में और अंतिम तुड़ाई जनवरी के अंत में होती हे। फसल तुड़ाई के समय यह ध्यान रखना चाहिए की सिर्फ पूर्ण रूप से पके फलो की ही तुड़ाई हो।

 

यह भी पढ़े…

स्ट्रॉबेरी के बारे में जानकारी

नाशपाती फल के उपयोग

चेरी फल के बारे में जानकारी

” यह पोस्ट पढ़ने के लिए दिल से धन्यवाद “