Importance Of Labor In Hindi – हमारे जीवन में श्रम का महत्त्व

नमस्कार देवियो और सज्जनों sochkasafar.in पर आपका एक बार फिर से स्वागत है। तो आज के इस लेख में हम बात करने वाले है Importance Of Labor In Hindi – हमारे जीवन में श्रम का महत्त्व के बारे में तो आज यह आर्टिकल आपके लिए बहोत ही ख़ास होने वाला है। तो उम्मीद है की आपको यह आर्टिकल पसंद आयेंगा। तो चलो देखते है आगे।

Importance Of Labor In Hindi – हमारे जीवन में श्रम का महत्त्व

Importance Of Labor In Hindi
हमारे जीवन में श्रम का महत्त्व

श्रम क्या है?

शारीरिक या मानसिक रूप से किया गया कोई भी कार्य श्रम ही है, जिसके बदले में मजदूरी की प्राप्ति होती है। यदि कोई प्राणी अगर किसी उदेश को प्राप्त करने के लिए मानसिक या शारीरिक कार्य करता है, तो वह श्रम कहलाता है।

श्रम से मानव के उन सभी शारीरिक या मानसिक प्रयास का बोध होता है। जो किसी फल की आशा से किया जाता है।

श्रम का महत्त्व

श्रम के बिना इस दुनिया में जीना बहोत ही मुश्किल माना जाता है हर व्यक्ति को जीवन में सफलता के लिए श्रम आवश्यक है। किसी भी उपलब्धि का आधार श्रम है श्रम के बगैर किसी भी क्षेत्र में स्थाई और पूर्ण सफलता अर्जित कर लेना असंभव है। इसलिए कहा जाता है “कर्म ही सफलता की कुंजी है” हमें अपने जीवन में श्रम करते रहना चाहिए जब कर्म होगा तो जरूर सफलता भी हाथ में होंगी। श्रम से महत्वपूर्ण वस्तु इस संसार में कोई नहीं है श्रम से ही कर्म है और कर्म से ही जीवन।

मनुष्य के पास श्रम के अतिरिक्त कोई वास्तविक सम्पति नहीं है। यदि यह कहा जाए की श्रम ही जीवन है तो यह गलत न होगा। जीवन में श्रम अनिवार्य है गीता में श्री कृष्ण ने कर्म करने पर बल दिया है। मानव देह मिला है तो कर्म तो करना ही पड़ेगा।

इस दुनिया में श्रम ही जीवन जीने का एक आधार है जो हर मनुष्य के जीवन के लिए बहोत महत्त्वपूर्ण होता है जो मनुष्य की गाड़ी को खींचता रहता है श्रम के बिना इस दुनिया में सभी जिव-जंतु से लेकर मनुष्य को भी जीवन जीना बहोत ही मुश्किल होता है छोटी कीड़ी से लेकर हाथी तक सभी जिव को श्रम आवश्यक है जैसे की घोंसले में बैठा पंछी भी खाना ढूंढने न जाये तो वो भी भूखा मर सकता है। इसलिए कहा जाता है की श्रम के बिना कुछ नहीं श्रम ही हमारे जीवन जीने का आधार है।

श्रम दो प्रकार का होता है पहला शारीरिक और दूसरा मानसिक जिसमे शरीर द्वारा किया गया श्रम शारीरिक कहलाता है। यह व्यायाम, खेल-कूद तथा कार्य के रूप में प्रकट होता है। शारीरिक श्रम मनुष्य को निरोगी, प्रसन्नचित और हष्ट-पुष्ट बनाता है। मानसिक श्रम मनुष्य का बौद्धिक विकास करता है दोनों का समन्वय ही जीवन में पूर्णता लाता है। अंत: जीवन की सफलता श्रम पर निर्भर है।

श्रम के बिना मनुष्य आलसी बनकर बैठे रहता है और उसका जीवन व्यर्थ हो जाता है। जिस प्रकार एक स्थान पर ठहरा हुआ जल बहुत समय तक स्वच्छ और निर्मल नहीं रह सकता और वह दुर्गन्धयुक्त हो जाता है उसी प्रकार श्रम के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ हो जाता है अकमर्णता शरीर को आलसी एव बेकार बना देती है इसलिए जीवन में सफलता के लिए निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए। परिश्रम से ही मनुष्य को किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

कुछ लोग श्रम की अपेक्षा भाग्य को महत्त्व देते है उनका कहना है की भाग्य में जो है वह अवश्य मिलेगा। अंत: दौड़ धाम करना व्यर्थ है। यह ठीक है की भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्त्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना और असफलता के लिए भाग्य को कोसना किसी प्रकार भी उचित नहीं। परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओ को भी बदल सकता है 

इस दुनिया में परिश्रम से कठिन से कठिन कार्य सिद्ध हो जाते है। श्रम में ऐसी शक्ति छुपी रहती है जो मानव को सिंह की भाति बलवान बनाकर मार्ग की कठिनाइयाँ दूर कर देती है श्रम ही सफलता की कुंजी है। अंत: यदि आप अपना व्यक्तिगत विकास चाहते है तो श्रम तो करना ही पड़ेगा।

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